बुधवार, 19 जून 2013

चाँद की वसीयत























चाँद नें अपनी रातों की बादशाहत का विस्तार करना चाहा
उसने बनाई एक वसीयत 
जिसमें एक मटरगश्त को 
आधी सल्तनत दे दी गई 
जिसे रात भर जागने और भटकने की लत हो और 
जो बुन सके सौम्यता की इतनी बड़ी चादर 
जिससे पूरी कायनात पर जिल्द चढ़ाया जा सके 

इस तरह मेरे हिस्से में जमीन आई और 
उसके पास रहा आसमान  

रातों को ये दोनों सुलतान 
भटकते हैं अपनी-अपनी रियाया की थकान 
बटोरने के लिए 
जिसे ढ़ोकर उतर जाते हैं 
क्षितिज की गहरी घाटियों में 

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सुशील कुमार 
दिल्ली 
19 जून, 2013   

3 टिप्‍पणियां:

  1. bahut sundar !! जो बुन सके सौम्यता की इतनी बड़ी चादर
    जिससे पूरी कायनात पर जिल्द चढ़ाया जा सके .........
    har pnkti lajwab h !! (Y)
    bdhayi :)

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  2. हार्दिक आभार अजय भाई रचना जी और सुमित भाई

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