मंगलवार, 11 जून 2013

रौशनदान













सोचता हूँ किसने बनाया होगा
सबसे पहले अपने घर में रौशनदान

दिन ढलते ही रौशनदान से  
अन्धेरा भी दाखिल हो जाता है कमरे में 
और मुझको लगता है कि  
रौशनदान की मिलीभगत 
रौशनियों से कम और अंधेरों से ज्यादा है  

घर के अन्दर बना एक घर
जहाँ मुझसे ज्यादा समय 
कबूतर अपनी मादा के साथ रहता है 
जिनकी गुटरगूँ मुझे ही दखलअंदाज बतातीं हैं 
मैं अक्सर दबे पाँव कमरे से बहार आ जाता हूँ 

नींद से ठीक पहले 
जब ऑंखें और कमरे को बत्ती बंद होती है 
मैं देख पाता हूँ 
एक रौशनदान जड़ा है दूर क्षितिज पर 
-----------------------------------------
सुशील कुमार 
दिल्ली 
12 जून 2013

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें