गुरुवार, 6 जून 2013

अनगढ़ पत्थर

तश्वीर गूगल से साभार 





















सदियों से
हमें यह सिखाया गया है कि 
पत्थर छेनी और हथौड़ी से तराशे जाते हैं
और हम देते चले आये हैं 
पाषाण खण्डों को विभिन्न आकार

छेनी की धार और हथौड़ी की मार 
को पत्थर पहचानते हैं और 
जो तराशे जाने को नियति मानते हैं 
पूज्यनीय या शोभनीय हो जाते हैं 

विशाल पर्वतों और दुर्गम पठारों में 
आज भी हैं विलक्षण शिलाखण्ड 
जो तराशे नहीं गए
इसलिए पूजे या सजाये भी नहीं गए

पहाड़ों के स्वाभाविक सौन्दर्य का हिस्सा बनकर
वे चेतना के अंकुरण की बाट जोह रहे हैं 

जब भी कभी जीवन संगीत  
इन पहाड़ों पर बजेगा
सबसे पहले उठ खड़े होंगे 
ये अनगढ़ पत्थर
आकार से मुक्त और चेतन 


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सुशील कुमार 
दिल्ली 
7 जून 2013

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