सोमवार, 26 दिसंबर 2011

फलसफा

लबों पर इलज़ाम लगे हैं, खामोश रह जाने के लिए
मुजरिम अल्फ़ाज भी हैं, साथ न निभाने के लिए
है कहाँ मुमकिन बयान-ए-बेकरारी
ये फलसफा तो है बस समझ जाने के लिए

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सुशील कुमार
26 दिसम्बर, 2011
दिल्ली    

गुरुवार, 15 दिसंबर 2011

आँखों में जो सपने न सजाए होते ( ग़जल )

आँखों में जो सपने न सजाए होते
सरेराह अपने, यूँ न पराये होते

मालूम होता अगर मुश्किल है सफ़र
तो हमने भी कुछ हमराह बनाए होते

गैरों पर भी कुछ इल्जाम लगा देता मगर
अपनों नें जो ज़ख्म न लगाए होते

जिनके नाम पर उठ रहीं हैं महफिल में उँगलियाँ मुझपर
काश आज वो भी मेरी बज़्म में आये होते

जिनकी निगाहों से छलकती थी शबनम-ए-वफ़ा
बाकरम वो बदले-बदले से नज़र न आये होते

अब समझा हूँ कि कागज के फूल से जो आती खुशबू
गुलशन इस कदर दुनियां में  न लगाए जाते


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(सुशील कुमार)
15, दिसम्बर 2011
दिल्ली 

शनिवार, 10 दिसंबर 2011

कसूरवार

जफ़ा बयां कर रहीं थी निगाहें
हम पढ़ न सके और
कसूरवार तुम्हें ठहरा दिया ......


(सुशील कुमार)

शनिवार, 3 दिसंबर 2011

तंत्र का जन

मरना होगा
रोज - रोज
जनतंत्र में
तंत्र का जन बन कर

जन का तंत्र के बन जाने तक |

 (सुशील कुमार)

शहर की दीवारों पर खुदे नाम

सबूतों का हवाला देकर,
तुम बच गए कैसे
शहर की दीवारों पर खुदे नाम,
कुछ और ही बयाँ करते हैं....


(सुशील कुमार)

इज़हार

खामोशी का कुछ मतलब ढूंढता रहा मैं
ये देखे बिना कि
तुम्हारी आँखें भी कह रही थीं कुछ ....


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(सुशील कुमार  ) 
दिल्ली 
दिसम्बर 3, 2011 

ज़िन्दगी के रास्ते

ज़िन्दगी के रास्ते अब मुश्किल न होंगे,
तेरी जुल्फ की पेंचो से होकर जो गुजरा हूँ !

दिलवालों की दिल्ली नगरिया ( गीत )


जानी-पहचानी सी है डगरिया
दिलवालों की दिल्ली नगरिया

रोज बुनते हैं सपने यहाँ पर
बेगाने भी अपने यहाँ पर
तकदीर की कर लूँ मरम्मत
ज़र्रे-ज़र्रे पर मेरी हुकूमत 
है सपनों की बड़ी गठरिया
दिलवालों की .........

शाम रंगीन है और रातें जवाँ  
देख के है ये दुनियां कितनी हैराँ
सियासत की है ये राजधानी
थोड़ी नई है, थोड़ी पुरानी
किसी की लग जाए नज़रिया
दिलवालों की ...........
       
देखो लोकतंत्र का मंदिर हमारा 
इंडिया गेट का दिलकश नज़ारा
कितना प्यारा है यमुना किनारा
हमसब ने दिल्ली को सवांरा
चलो घुमेंगें दिन-दोपहरिया  
दिलवालों की ...........

( सुशील कुमार )