लबों पर इलज़ाम लगे हैं, खामोश रह जाने के लिए
मुजरिम अल्फ़ाज भी हैं, साथ न निभाने के लिए
है कहाँ मुमकिन बयान-ए-बेकरारी
ये फलसफा तो है बस समझ जाने के लिए
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सुशील कुमार
26 दिसम्बर, 2011
दिल्ली
मुजरिम अल्फ़ाज भी हैं, साथ न निभाने के लिए
है कहाँ मुमकिन बयान-ए-बेकरारी
ये फलसफा तो है बस समझ जाने के लिए
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सुशील कुमार
26 दिसम्बर, 2011
दिल्ली
बहुत ख़ूब !
जवाब देंहटाएंखूबसरत कलेवर वाला एक प्रभावित करने वाला ब्लॉग सुशील जी । आज का ये कोहिनूर लिए जा रहा हूं बुलेटिन के लिए । आभार
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