शनिवार, 23 नवंबर 2013

जानता हूँ




















जब-जब मैं 
बाहर से भीतर की ओर जाता हूँ 
मुझे संकरी गलियों में मिलते हैं 
कुम्हलाये सपने,
संघर्ष की निशानियाँ 
और मंजिल से ठीक पहले 
साथ छोड़ गए साथियों के पदचिन्ह 

झाड़ता हूँ धूल 
चूमता हूँ उनको 

जानता हूँ 
जब मैं मुकाम पर पहुंचूंगा 
ये ही पूजे जायेंगे 

-----------------------------------------------
सुशील कुमार 
दिल्ली 23 नवम्बर 2013 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें