मंगलवार, 12 नवंबर 2013

दर्द





























किताबी लफ्फाजियों से बहुत दूर 
तुम मुझसे जहां मिलते हो 
वहाँ अपनी धुंधली परछाईयों में 
तुम होते हो 
मैं होता हूँ 
और वेदना के चटके हुए पैमाने होते हैं 

दर्द की दरकती हर परत में 
मुस्कराते हैं हम 
----------------------------------------
सुशील कुमार 
दिल्ली, 12 नवम्बर 2013

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें