शनिवार, 16 अक्तूबर 2010

संभावनाओं का शहर

शहर की रगों में
खून की तरह
सायरन बजाते हुए
सरपट दौड़ने लगी हैं 
कंट्रोल रूम की गाड़ियाँ
जिन पर लिखा है
आपके साथ, आपके लिए - सदैव

वासिंदे जानने लगे हैं कि
इंटेलिजेंस इनपुट
क्या चीज है

बिडला हाउस से
बाटला हाउस तक
हवाओं में
गोलियों की गूँज के बावजूद

एतिहासिक व पुरातात्विक महत्व की
इमारतों के दुबक कर
संगीनों का कम्बल
ओढ़ लेने के बावजूद

हज़रत की मज़ार पर
ये कव्वाल बेख़ौफ़ सुना रहे हैं
सूफियाना कलाम

और
कॉफी हाउस में जमीं है
इंटेलेक्चुअल्स और कवियों की मंडली
एक-एक चुस्की में
एक-एक पहर सुडकते हुए

फेसिअल करके चमकने लगा है
दिलवालों का शहर
कॉमनवेल्थ खेलों की मेज़बानी के लिए

संभावनाओं का शहर
दिख रहा है
चौकस भी, बेख़ौफ़ भी

याद आ रहे हैं "ज़ौक"
यह कहते हुए 
"कौन जाए ज़ौक 
पर दिल्ली की गलियाँ छोड़ कर" ! 

** सुशील कुमार **

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