रविवार, 21 नवंबर 2010

सेलिब्रेटी हत्यारा

नरसंहार-अपहरण
करता रहा वह
और धीरे-धीरे
सेलिब्रेटी बन गया

तो क्या
अनाथालय के उदघाटन में
फीता काटने के
योग्य हो गया ?

चुनाव में
कातिलों की फेहरिस्त में
होता है उसका भी नाम
और वह जीत जाता है 
चुनाव हर बार 

लोग उसे रहनुमा समझकर  
उसके असली जन-प्रतिनिधि
होने के दावे को बल देते हैं  
और
उसकी पार्टी उसे
भावी राष्ट्र-निर्माता बताती है

तंत्र मुश्किल से
निकाल पाता है
एक भी गवाह
उसके खिलाफ

निचली और उच्च अदालतें
बेबस होकर देती है
क्लीन-चिट

फैसला आने तक
मामला सुप्रीम कोर्ट में है
और हम कटघरे में
जो उसे हत्यारा समझते हैं !

**सुशील कुमार**

5 टिप्‍पणियां:

  1. क्षितिजा जी,
    आपकी टिप्पणियों के लिए शुक्रिया | आपका ब्लॉग देखा | अच्छा लगा आपकी रचनाशीलता को देख कर | अगर संभव हो तो "संभावनाओं का शहर" का लिंक और भी दोस्तों को भेजिएगा ऐसे ही कारवाँ बनता जायेगा |
    शुभकामनायें,
    सुशील

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  2. गहरे जज्बात के साथ लिखी गई सुंदर कविता . मगर इस ज़माने मे इन जज्बातों का मोल कहा. बस जिसकी लाठी उसकी भैस.

    जवाब देंहटाएं
  3. उपेन्द्र भाई,
    हमेशा आपका आभारी हूँ कि आप मेरी हरेक रचना को पढने और उसे समझने में समय दे रहे हैं | आपकी बात तो सही है लेकिन हम-आप और कर क्या सकते हैं | बस कलम चलाईये और जिसको लाठी चलाना है, चलाने दें |
    सुशील

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