जैसे-जैसे मुहल्ले में
भीड़ बढ़ती गई
बाज़ार को जगह देने के लिए
घर सिमटने लगे
पता ही नहीं चला
कब दबे-पाँव घरों में
घुस आया बाज़ार
शहर के तंबू में
पनाह लिए हुए
गाँव सोचता है
कि कोई और गाँव आए
तो दुआ-सलाम हो
-----------------------------
सुशील कुमार
दिल्ली, 24 जून, 2013
(तश्वीर : गूगल से साभार)
बहुत ही बढिया ,
जवाब देंहटाएंशहर के तंबू में
पनाह लिए हुए
गाँव सोचता है
कि कोई और गाँव आए
तो दुआ-सलाम हो ...क्या बात है जी कमाल है कमाल
आपका हार्दिक आभार अजय भाई
जवाब देंहटाएं