कई बार लगा
मैनें लाँघ दी सीमाएँ
कई बार लगा
हैसियत से ज्यादा बोल गया
हैसियत से ज्यादा बोल गया
कई बार लगा
मैं दायरों से बाहर निकल रहा हूँ
मैं दायरों से बाहर निकल रहा हूँ
कई बार लगा
मैं खडा हूँ वहीं और दायरे मुझसे बाहर निकल रहे हैं
मैं खडा हूँ वहीं और दायरे मुझसे बाहर निकल रहे हैं
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सुशील कुमार
मई 14, 2013
दिल्ली
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