वक्त नाजुक है
उसने भेष बदला है
क्यूंकि खुलेआम
वह घूम नहीं सकता था यहाँ
वक्त नाजुक है
अब मेमने भी उसको
भेंड समझने लगे हैं
खून से लथपथ पंजे
आसानी से मासूमों के
करीब जा रहे हैं
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सुशील कुमार
दिल्ली, 23 अप्रैल, 2014
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