संभावनाओं का शहर
सुशील स्वतंत्र का ब्लॉग
रविवार, 13 अप्रैल 2014
उनकी कविता
वे कविता नहीं लिखते
कवियों की तरह
वे जीवन और मृत्यु के बीच
ढूंढते हैं सत्य
और बन जाती है कविता
उनको मालूम है
इन दो बड़े छलावों के बीच
भूख ही सत्य है
वे मुट्ठी भींच कर
लिख रहे हैं कविता
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सुशील कुमार
14 अप्रैल 2014
दिल्ली
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