किताबी लफ्फाजियों से बहुत दूर
तुम मुझसे जहां मिलते हो
वहाँ अपनी धुंधली परछाईयों में
तुम होते हो
मैं होता हूँ
और वेदना के चटके हुए पैमाने होते हैं
दर्द की दरकती हर परत में
मुस्कराते हैं हम
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सुशील कुमार
दिल्ली, 12 नवम्बर 2013
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