संभावनाओं का शहर
सुशील स्वतंत्र का ब्लॉग
शनिवार, 10 दिसंबर 2011
कसूरवार
जफ़ा बयां कर रहीं थी निगाहें
हम पढ़ न सके और
कसूरवार तुम्हें ठहरा दिया ......
(सुशील कुमार)
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