एक ऐसा राजदार है मेरे कमरे में
जिसे पता हैं
उम्र भर अपने सीनें में
उसने दफ़्न रखा है मेरी हकीकत को
वह तब-तब हँसता होगा मुझपर
जब-जब अपना चेहरा साफ़ करने के लिए
मैं उसका बदन चमकाता हूँ
भावहीन एकटक वर्षों से वह
आत्मसात कर लेना चाहता हो
खुद में उतार कर
एक भावहीन तराजू में
रोज तौला जाता हूँ
इस बात से बेखबर कि
है कुछ जगह
बस एक क्षणभंगुरता ही है
जो हमदोनों को
समानुभूति की धरातल पर
एक साथ खड़ा करती है
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सुशील कुमार
दिल्ली
मई 7, 2012
जिसे पता हैं
मेरी सारी खूबियाँ और खामियाँ
फिर भी भरोसेमंद इतना किउम्र भर अपने सीनें में
उसने दफ़्न रखा है मेरी हकीकत को
वह तब-तब हँसता होगा मुझपर
जब-जब अपना चेहरा साफ़ करने के लिए
मैं उसका बदन चमकाता हूँ
भावहीन एकटक वर्षों से वह
सिर्फ चुपचाप निहारता है मुझे
जैसे मेरे अस्तित्व कोआत्मसात कर लेना चाहता हो
खुद में उतार कर
एक भावहीन तराजू में
रोज तौला जाता हूँ
इस बात से बेखबर कि
किसी की आँखों में
मेरी गफलतों के लिए भीहै कुछ जगह
बस एक क्षणभंगुरता ही है
जो हमदोनों को
समानुभूति की धरातल पर
एक साथ खड़ा करती है
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सुशील कुमार
दिल्ली
मई 7, 2012
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