संभावनाओं का शहर
सुशील स्वतंत्र का ब्लॉग
बुधवार, 30 नवंबर 2011
अनकहा सा कुछ
वो जो कुछ अनकहा सा था हमारे बीच
काश मै समझ पाता
काश तुम समझ पाते
मै कहता रहा कुछ और
तुम समझते रहे कुछ और
मेरे कहने और तुम्हारे समझने के बीच भी था कुछ
काश मै समझ पाता
काश तुम समझ पाते
(सुशील कुमार)
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