शनिवार, 23 नवंबर 2013

जानता हूँ




















जब-जब मैं 
बाहर से भीतर की ओर जाता हूँ 
मुझे संकरी गलियों में मिलते हैं 
कुम्हलाये सपने,
संघर्ष की निशानियाँ 
और मंजिल से ठीक पहले 
साथ छोड़ गए साथियों के पदचिन्ह 

झाड़ता हूँ धूल 
चूमता हूँ उनको 

जानता हूँ 
जब मैं मुकाम पर पहुंचूंगा 
ये ही पूजे जायेंगे 

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सुशील कुमार 
दिल्ली 23 नवम्बर 2013 

मंगलवार, 12 नवंबर 2013

दर्द





























किताबी लफ्फाजियों से बहुत दूर 
तुम मुझसे जहां मिलते हो 
वहाँ अपनी धुंधली परछाईयों में 
तुम होते हो 
मैं होता हूँ 
और वेदना के चटके हुए पैमाने होते हैं 

दर्द की दरकती हर परत में 
मुस्कराते हैं हम 
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सुशील कुमार 
दिल्ली, 12 नवम्बर 2013