मंगलवार, 28 मई 2013

विकल्प

बारूदी सुरंग सा जीवन 
तुम्हारे दमनकारी जूतों के इंतज़ार में
तैयार है विस्फोट के लिए 

जिन्दा रहना ही जब सबसे बड़ा सवाल हो
तब विकल्प हो जाते हैं सिमित  
और चुनना पड़ता है 
भूख या बन्दूक 

चुनना पड़ता है
जिन्दा रहने की चाह में 
मौत का एक विकल्प
आत्महत्या या मुठभेड़ 
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सुशील कुमार                              
दिल्ली
29 मई, 2013    

रविवार, 26 मई 2013

इज दिस मिस्टर कुमार ?(लघुकथा)

तश्वीर : गूगल से साभार 
"इज दिस मिस्टर कुमार ?" फोन उठाते ही एक सुरीली सी आवाज़ सुनायी दी । रौबीले अंदाज़ में मैंने कहा "यस" । उधर से आवाज़ आई "सर मैं मीनाक्षी वाधवा बोल रही हूँ, टेली-वेब सोल्यूशन  कंपनी से।" मैंने कहा- "जी बोलिए"। लड़की नें तपाक से कहा -"सर आपको यह कॉल एक ऑफर की इन्फोर्मेशन देने के लिए की गई है, जिससे आपके मोबाईल का बिल बिलकुल आधा हो जायेगा।" मैंने उबते हुए अंदाज में पूछा "मैडम आपको कैसे पता चला की मुझे अपना फोन बिल आधा करवाना है ?" लड़की नें कहा - " सर हमें तो डाटाबेस से नंबर मिलते हैं, इसलिए मैंने आपको फोन किया है। "  अब मैनें साफ़-साफ़ बात करना ही उचित समझा और कहा "मैडम, मुझे आपके ऑफर में कोई रूचि नहीं है।" यह सुनते ही लड़की ने तुरंत कुछ इस अंदाज में उत्तर दिया कि जैसे उसे पता था कि मैं यही कहने वाला हूँ - "सर आप एक बार पूरा ऑफर तो सुन लें, फिर मेरी गारंटी है की आप हमारा ऑफर तुरंत स्वीकार कर लेंगें" मैंने गुस्से में थोड़ी तेज़ आवाज़ में बोला "मैडम, मैं अभी अस्पताल में हूँ, मेरे मित्र की तबियत बहुत खराब है और मुझे रक्तदान करना है।"  टेली-कॉलर नें तुरंत जवाब दिया -"ओके सर तो क्या मैं आपको एक घंटे बाद फोन कर लूँ।" मैंने चिल्लाते हुए कहा -"अरी मेरी अम्मा, तू मुझे फोन मत कर, अगर जरुरत होगी तो मैं ही फोन कर लूँगा।" इस पर लड़की का जवाब था - "इट्ज़ ओके सर, जैसा आप ठीक समझें, लेकिन अगर आपने दस मिनट दिया होता तो मेरा टारगेट पूरा हो गया होता।"

मैनें लगभग हथियार डालते हुए कहा - "मैडम आपको समझ में नहीं आता है क्या कि  मैं अस्पताल में हूँ और मेरे मित्र की हालत गंभीर है?" लड़की ने खुद के पूरी तरह से प्रशिक्षित होने का प्रमाण देते हुए कहा - "सर आपके फ्रेंड तो जल्दी ही ठीक हो जायेंगे। मैं भी प्रे करुँगी। अगर आप कहें तो क्या मैं आपको अगले महीने फोन कर लूँ, सर प्लीज ?"

मैंने अपने मोबाईल फोन का लाल बटन दबाया और फोन को जेब में रखकर ब्लड-बैक की तरफ तेजी से चलने लगा।     

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सुशील कुमार 
दिल्ली
27, मई 2013 


गुरुवार, 16 मई 2013

आदतन


आदतन
मैं खो जाता हूँ
तुम्हारे ख्यालों में

आदतन
तुम शिकवा करते हो
मेरी ख़ामोशी से 
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सुशील कुमार
मई 14, 2013
दिल्ली 

कई बार लगा


कई बार लगा 
मैनें लाँघ दी सीमाएँ
कई बार लगा
हैसियत से ज्यादा बोल गया
कई बार लगा
मैं दायरों से बाहर निकल रहा हूँ
कई बार लगा
मैं खडा हूँ वहीं और दायरे मुझसे बाहर निकल रहे हैं  

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सुशील कुमार 
मई 14, 2013
दिल्ली 

रविवार, 12 मई 2013

गिरफ्त

तुम गिरफ्त में लेते हो
कुछ इस तरह
जैसे आकाश
पंक्षी को कैद करता है

उन्मुक्त रहने का
भ्रम भी रहे
और
बहार न निकल पाने की
असमर्थता भी  ।  


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सुशील कुमार 
दिल्ली 
13 मई 2013  

पर्दा

न रौशनी रूकती है
न ठंढी हवाएं

अब तो इन
पर्दों को बदल डालो ।

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सुशील कुमार
दिल्ली
13 मई 2013 

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